Mutual Funds में निवेश करते समय अक्सर एक बड़ा सवाल सामने आता है—Active Funds बेहतर होते हैं या Passive Funds? निवेशक अक्सर इस भ्रम में रहते हैं कि किस प्रकार का फंड लंबे समय में बेहतर रिटर्न देगा और किसमें जोखिम कम रहेगा। आज के बदलते मार्केट माहौल में यह तुलना और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
Active Funds में fund manager बाजार से बेहतर रिटर्न देने की कोशिश करते हैं, जबकि Passive Funds किसी benchmark index (जैसे Nifty 50 या Sensex) को replicate करते हैं। इस वजह से खर्च, जोखिम और रिटर्न—तीनों में अंतर दिखाई देता है।
इस विश्लेषण में हमने टॉप Active और Passive Funds के 1-year और 10-year returns की तुलना की है, ताकि निवेशकों को यह समझने में आसानी हो कि किस श्रेणी में consistency ज्यादा है।
Active Funds में professional fund managers stocks चुनते हैं और actively portfolio को manage करते हैं। उनका लक्ष्य benchmark index को beat करना होता है। इसमें research, sector allocation और timing का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
लेकिन इस active management के बदले investors को ज्यादा expense ratio चुकाना पड़ता है। कई बार fund managers benchmark को beat कर लेते हैं और कई बार underperform भी कर जाते हैं।
Passive Funds, जैसे Index Funds और ETFs, किसी index को सिर्फ replicate करते हैं। इनमें fund manager की active भूमिका नहीं के बराबर होती है।
Expense ratio काफी कम होता है और returns सीधा-सीधा benchmark से जुड़ा होता है। मार्केट में बढ़ती transparency और lower cost के कारण इनकी मांग तेजी से बढ़ी है।
नीचे दी गई टेबल में top-performing Active और Passive Funds की return comparison दी गई है:
| Fund Category | Fund Name | 1-Year Return | 10-Year Return |
|---|---|---|---|
| Active Fund | HDFC Flexi Cap Fund | ▲ 37.4% | ▲ 16.8% |
| Active Fund | SBI Small Cap Fund | ▲ 42.1% | ▲ 21.6% |
| Passive Fund | Nippon India Nifty 50 Index Fund | ▲ 26.3% | ▲ 13.4% |
| Passive Fund | UTI Nifty 500 Index Fund | ▲ 29.8% | ▲ 14.6% |
1-year horizon में Active Funds ने साफ तौर पर बेहतर प्रदर्शन किया है। HDFC Flexi Cap Fund और SBI Small Cap Fund ने index funds को काफी पीछे छोड़ दिया है। इसका कारण small-cap और mid-cap segment में तेजी भी है, जहां active stock picking प्रभावी साबित हुआ।
हालांकि ध्यान देने वाली बात यह है कि short-term में higher volatility active funds के returns को ऊपर भी ले जाती है और नीचे भी।
10 साल की लंबी अवधि में देखा जाए तो Passive Funds ने काफी स्थिर और consistent प्रदर्शन दिखाया है। Long-term compounding में low-cost structure का बड़ा फायदा मिलता है।
Active Funds में returns कभी-कभी बहुत अच्छे होते हैं, लेकिन कभी-कभी benchmark से नीचे भी चले जाते हैं। वहीं passive funds में यह उतार-चढ़ाव कम देखने को मिलता है।
Active Funds का expense ratio 1% से 2.25% तक होता है, जबकि Passive Funds का 0.05% से 0.30% तक।
लंबी अवधि में यही छोटा अंतर compounding के जरिए बड़ा फर्क पैदा करता है और Passive Funds को फायदा देता है।
Active Funds में fund manager की decision-making का बड़ा रोल होता है। गलत sector selection या timing से returns प्रभावित हो सकते हैं।
Passive Funds में यह risk कम होता है क्योंकि वे index को follow करते हैं। इसलिए risk moderate से low रहता है।
अगर investor market को beat करना चाहता है और higher risk लेने को तैयार है, तो Active Funds उपयुक्त हो सकते हैं। लेकिन अगर स्थिरता और low-cost compounding पसंद है, तो Passive Funds एक मजबूत विकल्प बनकर उभरते हैं।
इनमें investment goal, risk profile और investment horizon के आधार पर निर्णय लेना चाहिए।
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